Wednesday, October 28, 2009

हायकू कविता

सड़को पर
खून बहने लगा
पानी सुखा हैं ........

मौसम भी हैं
डरा घबराया सा
आजकल तो.....

जीता हैं कौन
मरता मरता हैं
हर कोई........

ना जाने कहाँ
फ़िर मर गई हैं
इंसानियत......

हैं कहाँ पर
प्यार की बहार
मोहब्बत........

यह कविता लिखने की "जापानी विधा" हैं जिसमे ऊपर व नीचे के छंदों में पॉँच पॉँच वर्ण व बीच में सात सात वर्णों का इस्तेमाल किया जाता हैं |जिसमे अधिकतर सामाजिक जीवन का चित्रण होता हैं |


Sunday, October 25, 2009

एक संवाद

क्यू करते हो किसी से मोहब्बत, क्यू रखते हो किसी से लगाव, क्या नही जानते की जिस, शख्स को तुम पसंद करते हो वह एक शख्सियत पहले से हैं और शख्स बाद में, उसकी भी कोई अपनी पसंद हो सकती हैं, उसकी भी कुछ ज़रूरते हो सकती हैं और ये ज़रूरी तो नही की उसकी और तुम्हारी पसंद ज़रूरते एक जैसी या फ़िर एक सी ही हो ..............

Saturday, October 24, 2009

मुझको तड़पता देखकर

मुझको तड़पता देखकर,उन्हें चैन आता हैं
उनको तड़पता देखकर,मेरी जान जाती हैं

मेरी धड़कन में रहते हैं,वो साँसों में रहते हैं
नही उनसा कोई, दुनिया में ये लोग कहते हैं
मुझको मचलता देखकर,उन्हें आराम आता हैं
उनको मचलता देखकर,मेरी नींद जाती हैं

मुझ जैसा आशिक भी, ना कोई होगा दुनिया में
मुहब्बत में जो दे दे जाँ, ना कोई होगा दुनिया में
मुझको बहकता देखकर,उन्हें हंसना आता हैं
उनको बहकता देखकर,मुझे शर्म आती हैं

मुझको तड़पता देखकर,उन्हें चैन आता हैं
उनको तड़पता देखकर,मेरी जान जाती हैं

शिकवा

हमतो हर पल तुमको चाहते रहे
तुम अगर ना चाहो हम क्या करे

हम तो तुम पर जाँ देते थे, तुमने ना ये जाना
तुमको हमने दिल से चाहा, तुमने ना पहचाना
हमतो सदियो से ये गीत गाते रहे
तुम अगर सुन ना पाओ हम क्या करे

फूलो से खुशबु जब उठती हैं, याद तुम्हारी आए
चाहते रहेंगे हम तो तुमको ,चाहे जो हो जाए
हम तो हर क्षण तुमको बुलाते रहे
तुम आना ना चाहो हम क्या करे

हम तो हरपल तुमको चाहते रहे
तुम अगर ना चाहो तो हम क्या करे...............

कुछ अपने गीत 2

आज इस चिठ्ठे के माध्यम से अपने लिखे कुछ और गीत प्रेषित कर रहा हूँ आशा हैं यह भी आप सभी को पसंद आयेंगे यह गीत मैंने अपने कॉलेज के दिनों में अपने ग्रुप के लिए लिखे थे इन गीतों को हमने स्टेज पर गाया भी हैं इन गीतों की धुनें भी हमारी स्वयं की बनाई हुई हैं|इन धुनों को हमारे ग्रुप लीडर राजेश मस्ताना जी अपने संगीत से संवारा हैं|

पहला गीत इस गीत को हमने शीर्षक दिया हैं "शिकायत"

रोज तुम ना आया करो,ये दुनिया वाले सतायेंगे
दुनिया की हमें परवाह नही,हम तो मिलने आयेंगे
देखेगा जो कोई अगर,हम कैसे बच पाएंगे
दुनिया की हमें परवाह,नही हम तो मिलने आयेंगे

-प्यार मौहब्बत के होते हैं,दुनिया में दिन चार
प्यार तो बस प्यार हैं,ये माने किसी से हार
तुमको देखे बिना सनम,हम तो ना रह पाएंगे
दुनिया की हमें परवाह नही,हम तो मिलने आयेंगे
रोज़ तुम ................
दुनिया की ................

अगर कभी जो हम बिछडे,तो कैसे रह पाएंगे
होके जुदा तुमसे सनम,हम तो मर ही जायेंगे
फ़िर दुनिया में लेके जनम,तेरे लिए हम आयेंगे
दुनिया की हमें परवाह नही,हम तो मिलने आयेंगे

रोज़
तुम ना आया करो,ये दुनिया वाले सतायेंगे
दुनिया की हमें परवाह नही,हम तो मिलने आयेंगे

Thursday, October 22, 2009

कलरलेस होता कलर्स 2

मैं यहाँ आपको ये स्पस्ट करता चलू की यह सारे विचार मेरे स्वयं के हैं जिनका किसी से भी कोई लेना देना नही हैं मैंने सिर्फ़ अपना नजरिया इस खास चैनल में आने वाले कुछ धारावाहिकों के प्रति रखा हैं हो सकता हैं की मेरा यह नजरिया काफ़ी लोगो पसंद न भी आए पर यह आप सबको सोचने पर मजबूर अवश्य करेगा ऐसा मेरा मानना हैं|
इनके अलावा और भी बहुत से धारावाहिक हैं जैसे की कृष्णा,कोई आने को हैं,विक्रम वेताल,सबकी जोड़ी वही बनाता भाग्यविधाता,इन सभी पर भी लगो ने मेरी राय जाननी चाही हैं एक समीक्षक होने के नाते मेरा यह कर्तव्य बनता हैं की आपको समय समय पर अपने विचारो से अवगत कराता रहू |इसी आशा के साथ ....................
अगली बार कुछ फिल्मो से सम्बंधित जानकारी देने का प्रयास करूँगा |

ना आना इस देश ...

यह धारावाहिक शुरू तो "बेटियो व औरतो" पर होने वाले ज़ुल्म पर हुआ था जिसमे एक "बेटी" होने पर "अम्माजी" नामक किरदार उस बेटी (अपनी पोती)को मरवा देती हैं|जो इस धारावाहिक का इंट्रो में दिखाया गया था उस कथा का अब चल रही कहानी से दूर दूर तक कोई वास्ता नज़र नही आता हैं|कहानी अब कभी तो मुख्य किरदार "सिया"के हारने पर तो कभी उसकी शादी पर घुमती सी प्रतीत होती हैं असल मकसद भटक गया लगता हैं, हाँ अम्माजी का किरदार ज़रूर प्रभावित करता हैं जिसे देखकर एक अन्य धारावाहिक "बालिका वधु "की "मांजी" सा की याद अक्सर आ जाती हैं|कही से भी यह धारावाहिक अपने मकसद को पुरा करता नज़र नही आता हैं, अच्छा होता अगर इसका नाम "अम्माजी का बीरपुर" होता

माता पिता के चरणों में स्वर्ग हैं

यह धारावाहिक कई फिल्मो की"खिचडी" मिलाकर बनाया गया लगता हैं जिनमे साजन,कभी खुशी कभी ग़म,हम साथ साथ हैं व घर एक मन्दिर प्रमुख हैं|इस धारावाहिक की मूलकथा क्या हैं यह बता पाना ज़रा मुश्किल प्रतीत होता हैं|हम क्या देख रहे हैं व निर्देशक क्या दिखाना चाह रहा हैं पता नही चलता कभी लगता हैं की यह एक आम आदमी के संघर्ष को दर्शाना चाहता हैं तो कभी लगता हैं की शायद किसी अपाहिज के द्वारा सही जाने वाली ज़िन्दगी की मुश्किलों को दिखाने का प्रयास मात्र हैं|धारावाहिक का शीर्षक गीत तक फ़िल्म कभी खुशी कभी ग़म के शीर्षक से पुरा का पुरा चुराया गया हैं|इसमें देखने लायक अगर कुछ हैं तो पिता का किरदार निभा रहे कलाकार की कलाकारी जो वाकई कभी कभी दिल को छू जाती हैं|

उतरन

यह धारावाहिक "दूरदर्शन" से अस्सी के दशक में प्रसारित कार्यक्रम "एक कहानी"से उठाया गया हैं जिसमे "किसी लेखक"जिसका नाम मुझे ठीक से याद नही हैं शायद (इस्मत चुगताई) की इसी "उतरन"नाम की कहानी का विस्तार कर दिया गया हैं मूल कहानी में "इच्छा" वाला किरदार जानी मानी अभिनेत्री "पल्लवी जोशी" ने निभाया था उस कहानी में भी यही सब था अंत में यह किरदार दुसरे किरदार से कहता हैं की "ज़िन्दगी भर मैंने तेरी उतरन पहनी हैं, पर तेरा पति मेरी उतरन हैं" जो तुझे हमेशा मेरी याद दिलाती रहेगी|
इस कहानी को जिस तरह से खिंचा जा रहा हैं उसे देखकर तो लगता हैं की निर्देशक इसका अंत करना ही नही चाहते|
हर बार एक नया ड्रामा, एक नया किरदार जो कुछ समय के लिए मूल कथा को भटका देता हैं|
अगले अंक में "माता पिता के चरणों में स्वर्ग हैं "का विश्लेषण ज़रूर पढ़े |...............

बालिका वधु

कलर्स चैनल में सबसे पहले प्रसारित होने वाला कार्यक्रम"बालिका वधु" हैं जिसने थोड़े से ही समय में अपनी अलग पहचान बनाली थी, इस कार्यक्रम ने कई बड़े चैनलों के सुपरहिट कार्यक्रमों की छुट्टी करदी थी|इसका"कांसेप्ट" इतना नया व अनोखा था की यह रातोरात जबरदस्त लोकप्रियता पा गया |पर जब कोई धारावाहिक सफलता प्राप्त करता हैं तो निर्देशक उस धारावाहिक की सफलता को भुनाना शुरू कर देते हैं|इस धारावाहिक के साथ भी ऐसा ही हुआ यह सुपरहिट धारावाहिक भी इसी राह पर चलने लगा हैं जिससे यह अपने मूल कथानक से भटक गया प्रतीत होता हैं| एक सीधे सरल प्लाट को निर्देशक ने बाल विवाह से होने वाली हानियो से लेकर पुश्तैनी दुश्मनी तक पहुँचा दिया हैं इस दौरान कहानी कई जगह भटकी,मुख्यपात्र आनंदी के विवाह से होकर,प्रताप की मृत्यु,सुगना का दुसरा विवाह व अवैध संतान,श्याम व महावीर सिंह का बेवजह प्रवेश ना सिर्फ़ मूलकथा को उलझा रहा हैं बल्कि दर्शको की दुरी भी बना रहा हैं|जिससे यह समझ पाना मुश्किल हैं की आख़िर निर्देशक दर्शाना व दिखाना क्या चाह रहा हैं|हम जो देख रहे हैं उसका बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई से तो कुछ लेना देना प्रतीत नही होता कम से कम मेरी नज़र में तो नही |
अगले अंक में "उतरन"धारावाहिक पर हमारा विश्लेषण पढ़ना न भूले .................इति

Wednesday, October 21, 2009

कलरलेस होता कलर्स 1

आप सभी कलर्स चैनल तो देखते ही होंगे.क्या कुछ समय से ऐसा नही लग रहा की इस चैनल की जो विशेषता थी वो ख़त्म होती जा रही हैं इसके सारे कार्यक्रम या तो नक़ल पर आधारित हैं या फ़िर रिअल्टी शोज पर,शुरआत बड़ी धमाकेदार थी आज से लगभग डेढ़ साल पहले जब इस चैनल की शुरुआत हुई थी
तो ऐसा लगा था की यह चैनल कुछ अलग होगा और ऐसा था भी बालिका वधु,खतरों के खिलाड़ी जैसे अन्य कार्यक्रमों की बदौलत इस चैनल ने सभी नामी चैनलों की जमात में अपनी अलग पहचान बना ली थी परन्तु बाद में यह अपनी पकड़ खोता चला गया और जा रहा हैं|
आइये देखते हैं इस चैनल पर प्रसारित होने वाले कुछ कार्यक्रमों का विश्लेषण -

शाहनवाज हुसैन को वीजा

शाहनवाज हुसैन जी को वीजा न देकर अमरीका ने अपने दोगलेपन के होने का पक्का सबूत दे दिया |एक तो शाहनवाज जी को वीजा सिर्फ़ इस बात पर नही दिया की उनके नाम में हुसैन आता हैं लेकिन वही अपने बराक ओबामा को राष्ट्रपति इसलिए बना दिया की उनके नाम में हुसैन आता हैं |

Tuesday, October 20, 2009

कम आसमां कम ज़मी

कल शाम मेट्रो रेल में यात्रा करते समय जब बाहर की तरफ़ नज़र गई तो अचानक दिमाग में कुछ शब्द उमड़ने लगे जिन्हें लिखने का यह छोटा सा प्रयास कर रहां हूँ आशाः करता हूँ की आप सभी को यह अवश्य पसंद आयेंगे |

कम "आसमां" कम "ज़मीं" है यारो
हम भी कितने"गरीब"है यारो

कल जो लुटा करते थे,घरो को
वो आज सबसे बड़े "शरीफ" है यारो

कोई"बंगले" में कोई"फुटपाथ"पर
अपना अपना "नसीब" है यारो

कल तक जो मेरे बेहद"अज़ीज़" थे
आज वो मेरे ही "रकीब" है यारो

पीना, पीलाना,पीकर धमकाना
ये कैसी,कौनसी"तमीज" है यारो

चंद "हसरते" व थोडी "ख्वाहिसे"
बस यही अपनी "खरीद" है यारो


आ ही गए हो तो"पीकर" चलो
"मैयखाना- ए- जिंद" करीब है यारो

Sunday, October 18, 2009

एक वंदना

आज एक "वंदना "जो की स्कूल के दिनों में अक्सर दूरदर्शन के किसी कार्यक्रम में आया करती थी उसे आप सभी के सम्मुख रख रहा हूँ इस आशा के साथ की आपको भी यह उतनी ही अच्छी लगेगी जितनी की मुझे लगी यह वंदना इतने समय तक मुझे याद इसलिए रही की इसके शब्द इतने सुंदर व सरल हैं की दिल को छू जाते हैं

अज्ञान- के अंधेरो से ......,हमें ज्ञान के उजाले की और ले चलो
असत्य की दीवारों से, हमें सत्य के शिवालो को और ले चलो
सारे जहाँ के सब दुखो का "एक ही तो निदान हैं"
या तो वह अज्ञान- हैं ....या तो वह अभिमान हैं
नफरतों के ज़हर से,प्रेम के प्यालो की और ले चलो
अज्ञान- के ....
हमके मर्यादा न तोडे "अपनी सीमा में रहे"
ना करे अन्याय और ना अन्याय औरो का सहे
कायरो से दूर हो,वीर ह्रदयवालो की और ले चलो
अज्ञान- के अंधेरो से हमें ज्ञान के उजालो की और ले चलो
असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो
अज्ञान- के ...........

Thursday, October 15, 2009

कुछ खेल संगंणक के

यह "संगंणक" भी बहुत मज़ेदार वस्तु हैंक्या कहाँ, नही जानते "संगंणक" क्या हैं? अजी जनाब "कैलकुलेटर" जी हां कैलकुलेटर ही संगंणक कहलाता हैं,बड़े काम की चीज़ हैं साहब बिना इसके आज की दुनिया में काम हिम नही चलता खैर आप परेशान न हो मैं आज आपको कोई इसकी जानकारी नही दे रहां मैं तो इसमे खेले जाने वाले कुछ खेलो के बारे में आपको बताना चाहता हूँ ।

कल्पना कीजिये की तीन लड़के व तीन लडकियां (अलग अलग) फ़िल्म देखने एक ही सिनेमा हॉल में गए(अगर एक साथ जाते तो भी क्या हो जाता )फ़िल्म शुरू ही हुई थी की बिजली चली गई बिजली को चालू करने के लिए ९९९० वाट बिजली की अलग से कटौती की गई जब बिजली आई तो एक अलग ही नज़ारा देखने को मिला क्या आप बता सकते हैं वो नज़ारा क्या था
नही समझे ना अजी जनाब अब इसी कहानी को संगंणक सॉरी कैलकुलेटर की मदद से कर के देखें माजरा समझ में आ जाएगा बस लड़को को १ का अंक तथा लड़कियों को ० का अंक दे दीजिये व बिजली की कटौती हेतु ९९९० को घटा दीजिये

खेल नंबर २)यदि आप को किसी को हैलो कहना हो तो .०३८६७ को २ से मल्टीप्लाई कीजिये तथा उत्तर को उल्टा करके पढिये

अगर आप को जूते चाहिए तो १०६०० को २ से भाग करके उसमे ४५ जोड़ दे तथा उल्टा करके देखे,आपको शूस शब्द नज़र आएगा

अब एक पहेली आप सभी के लिए कैलकुलेटर में १०० का अंक सिर्फ़ तीन बटनों का प्रयोग करके लाना हैं शर्त यह हैं की कोई भी बटन दो बार इस्तेमाल नही होना चाहिए चकरा गए ना अजी जनाब कोशिश तो कीजिये ..............

Tuesday, October 13, 2009

एक गीत आपके लिए

आपसे मिलना हमको अच्छा लगा
आपके साथ चलना अच्छा लगा.........

बाते होने लगी वक्त कटता रहा
मुस्कुराते हुए साथ चलता रहा
आपसे वक्त भी करने सजदा लगा
आपके साथ चलना अच्छा लगा
आपसे मिलना .................

सोचते ही रहे आज हम हरपल
आपके हुस्न पे लिखे हम एक ग़ज़ल
आपसे जाने क्यूँ ना हमको परदा लगा
आपके साथ चलना अच्छा लगा
आपसे मिलना ...............

आपसे मिलने घर तो आयेंगे हम
आपको अब तो पाना चाहेंगे हम
आपसा कोई ना हमको अपना लगा
आपके साथ चलना अच्छा लगा
आपसे मिलना .....................

Monday, October 12, 2009

एक हैरान करने वाली ख़बर

अमरीका के राष्ट्रपति श्री बराक ओबामा को शान्ति का नोबल पुरस्कार दिया जाना इस वर्ष की सबसे बड़ी हैरान करने वाली ख़बर हैं इस पर यकीन करना मुझ जैसे साधारण व्यक्ति के बस से बाहर हैं ,बहुत बार सोचा ,ओबामा जी की कुंडली भी देखी पर समझ नही आया की यह हुआ कैसे कंही तो लगता हैं की कही यह नोबल पुरस्कार पहले से ही तो फिक्स नही था वैसे ऐसा होने की सम्भावना तो नही लगती क्यूंकि नोबल पुरस्कार दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता हैं और आजतक उनका कोई भी ग़लत चयन पुरस्कारों को लेकर तो सुनने में नही आया मगर फ़िर भी लगता हैं कुछ तो गड़बड़ हुआ ही हैं

Friday, October 9, 2009

एक बेटी का दर्द

प्रस्तुत छोटी सी कविता हमारी बिटिया श्रुतिका को जया जी द्वारा उसके स्कूल के होमवर्क हेतु लिखाई गई कविता के बोल इतने सुंदर लगे की मैं इन्हे आप सब को भी पढाना चाह रहा हूँ | कभी कभी एक छोटी सी बात भी बहुत बड़ा अर्थ समझा जाती हैं, प्रस्तुत कविता में मुझे ऐसे ही कुछ विचार एक बेटी के दर्द को बखूबी बयां करते हुए लग रहे हैं|


मैं हूँ एक बिटिया अलबेली
नही कभी किताबो से खेली
मम्मी पापा ये करती पुकार
लड़की को भी हैं, पढने का अधिकार


लड़का लड़की सब एक समान
यही हैं सर्व शिक्षा का अभियान
मिले सभी को शिक्षा और ज्ञान
तभी तो बढेगा देश का मान सम्मान

अपनी बिटिया को खूब पढाये और आगे बढाये ...................

Thursday, October 8, 2009

हो रहा हैं भारत का उत्थान

आज सुबह जब पता चला की भारत के वैज्ञानिक "वी रामकृष्णन"जी को रसायन विज्ञानं में नोबल पुरस्कार दिया गया हैं तो बहुत खुशी हुई |एक ज्योतिषी होने के कारण इसका भान तो पहले से ही था जिसका उल्लेख मैंने इस ब्लॉग के मध्यम में भी किया था (भारत बनेगा नंबर वन )यह मैं दावे से कह सकता हूँ की यह तो सिर्फ़ शुरुआत भर हैं भारत आने वाले छः सालो में जबरदस्त तरक्की करेगा तथा विश्व पटल में अपना नाम दर्ज कराएगा|
जैसा की उल्लेख किया गया था की भारत खेल के क्षेत्र में भी काफ़ी अच्छी तरक्की करेगा वैसा होता प्रतीत भी हो रहा हैं पिछले कुछ महीनो से भारत क्रिकेट के अलावा भी अन्य खेलो में काफ़ी नाम कमा रहा हैं |सन २०१० व २०११ में भारत में ही बड़े खेलो का आयोजन हो रहा हैं, जिससे भारत विश्व में अपना लोहा मनवाएगा ऐसा मेरा विश्वास ही नही मानना भी हैं|................इति

Tuesday, October 6, 2009

कुछ फिल्मी खबरों की मरम्मत

आमिर खान की फ़िल्म का नाम" थ्री इडियट्स "
कौन? शाहरुख़,सलमान और सैफ
अक्षय की नई फ़िल्म "ब्लू"
"सिंह इस किंग" का यह हाल वैसे भी "कमबख्त इश्क" के बाद" ब्लू "फ़िल्म ही बन सकती हैं !
अमरीका में तीन भारतीय जुआ खेलते पकड़े गए
"कमीने""न्यूयार्क" में "दोस्ताना"दिखा रहे थे !
हरमन की नई फ़िल्म "व्हाट्स यौर राशिः "
भाई ऐसी फ़िल्म करोगे तो "२०५०" में ही "विक्टरी" मिलेगी !
नील नितिन मुकेश की" जेल"
बहुत जल्दी तरक्की हो रही हैं "जोह्नी गद्दार ""न्यूयार्क" के बाद "आ देखे ज़रा" "जेल "
शाहरुख़ की "माय नेम इज खान "
अच्छा होता अगर माय नेम इज बच्चन होती !

राज ठाकरे का मुंबई

फ़िल्म "वेक उप सिद "के लिए जिस तरह मशहूर निर्देशक "करण जौहर " ने मान्यवर" राज ठाकरे" से माफ़ी मांगी उसे देखकर तो ऐसा लगता हैं की राज ठाकरे हमारे देश के कानून से भी बड़े हैं ,करण जौहर की इस फ़िल्म में "मुंबई" को कई जगह "बम्बई" कहा गया हैं क्या इस बात से कुछ फर्क पड़ता हैं? सिर्फ़ इतना की राज ठाकरे जैसे लोगो की वजह से फ़िल्म को मुंबई और महाराष्ट्र में प्रर्दशित नही होने दिया जाता |
क्या मुंबई राज जी की हैं ?क्या करण ने राज से माफ़ी मांगकर नया ड्रामा तो नही किया? करण यह अच्छी तरह से जानते हैं की अपनी फ़िल्म को कैसे बेचना हैं कुछ पैसो की खातिर इस तरह की हरकत कर उन्होंने ना सिर्फ़ पब्लिसिटी बटोरी बल्कि फ़िल्म को न्यूज़ में भी ला दिया|

ऐसा ही कुछ अभी कुछ दिन पहले शाहरुख़ खान ने भी अपनी करण की ही फ़िल्म "माय नेम इज खान" के लिए भी किया था जब उन्होंने अमरीका में अपना नाम पूछे जाने पर "माय नेम इज खान "कहकर विवाद पैदा कर दिया था
शिक्षा -"बदनाम होंगे तो क्या नाम नही होगा ".......................

यहाँ खुदा वहां खुदा

राजधानी दिल्ली की किसी भी सड़क से गुजरो वहां आपको कुछ कुछ काम होता हुआ नज़र आएगा |कही मेट्रो ट्रेन की वजह से, तो कही कौमन्वैल्थ गेम्स की वजह से, दिल्ली जबरदस्त तरीके से रात दिन बदलने की और अग्रसर हैं
लगता हैं दिल्ली अब विदेश के बड़े शहरों से मुकाबला करने वाली हैं परन्तु इन सब के चलते आम आदमी को कितना सफर करना पढता हैं यह तो बेचारा वही जानता हैं ऐसे में अक्सर यह शेर याद जाता हैं|
यहाँ खुदा वहां खुदा,यहाँ खुदा वहां खुदा .........जहाँ नही खुदा,वहां काम चल रहाँ हैं|

Sunday, October 4, 2009

कांग्रेस का देश प्रेम


गाँधी जयंती के दिन जिस तरह से कुछ कांग्रेस सांसदों ने आलाकमान के आदेश पर दलितों के घर पर एक दिन बिताने का नाटक किया उसे देखकर तो अवश्य ही हमारे पूज्य बापू जी की आत्मा को कष्ट पहुँचा होगा सोनिया जी यह भूल गई की भले ही इस तरह की आदेशो का फरमान जरी कर उन्होंने एक अच्छा प्रयास किया था परन्तु इस तरह का उंच दर्जे का व्यावार करना उनके विदेशी होने की वजह से तो काबिलेतारीफ हैं पर हमारे भारतीय सांसदों हेतु यह करना निहायत ही बचकाना प्रयास साबित हुआ हैं इससे अच्छा तो यह होता की वह स्वयं दलितों को एक दिन अपने सांसदों के साथ बिताने का आदेश जारी करती जिससे उन दलितों को कुछ समय ही सही सांसदों जैसी ज़िन्दगी जीने का व मौज करने का मौका मिल जाता

Thursday, October 1, 2009

सिक्के के दो पहलु

हर सिक्के के दो पहलु होते हैं |दोनों पहलुओ को मिलकर ही उसका मूल्य बनता हैं |यहाँ तीन व्यक्तियो के बारे में कुछ तथ्य हैं,जो सिक्के का एक ही पहलु हैं |इसके आधार पर बताईये की आप तीनो में से किसे विश्व नेता चुनना चाहेंगे|
उम्मीदवार अ).भ्रष्ट नेताओ से जुडा हुआ हैं|काम करने से पहले ज्योतिषियो से राय लेता हैं |उसकी दो रखैले हैं |वह चैन स्मोकर हैं और दिन में आठ दस पैग पी जाता हैं |


उम्मीदवार
बी.)उसे दो बार ऑफिस से निकाला जा चुका हैं |दोपहर तक सोता हैं|कॉलेज के ज़माने में अफीम का नशा करता था और हर शाम एक बोतल व्हिस्की पी जाता हैं|

उम्मीदवार स.) वह शाकाहारी हैं |कभी सिगरेट नही पीता|कभी कभार बीअर पी लेता हैं|महत्वाकांक्षी हैं |उसके कोई विवाहेत्तर सम्बन्ध नही हैं|

बताइए
आप किसे अपनी दुनिया का नेता चुनना चाहेंगे |
अब देखें की वे तीनो उम्मीदवार कौन हैं|यह सिक्के का दूसरा पहलु हैं |

.)फ्रैंकलिन डी रूज़वेल्ट हैं |जो चार बार अमरीका के राष्ट्रपति रहे और उन्होंने महामंदी और द्वितीय विश्वयुद्ध के समय देश का नेतृत्व किया|

बी
.)विंस्टन चर्चिल हैं |जो दो बार ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे और उन्हें साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार भी मिला था |

स.)अडोल्फ़ हिटलर हैं |जिसे दुनिया मानवता का हत्यारा मानती हैं |

शिक्षा
-किसी बात के दोनों पहलुओ को जानकर ही फ़ैसला किया करे