Sunday, October 18, 2009

एक वंदना

आज एक "वंदना "जो की स्कूल के दिनों में अक्सर दूरदर्शन के किसी कार्यक्रम में आया करती थी उसे आप सभी के सम्मुख रख रहा हूँ इस आशा के साथ की आपको भी यह उतनी ही अच्छी लगेगी जितनी की मुझे लगी यह वंदना इतने समय तक मुझे याद इसलिए रही की इसके शब्द इतने सुंदर व सरल हैं की दिल को छू जाते हैं

अज्ञान- के अंधेरो से ......,हमें ज्ञान के उजाले की और ले चलो
असत्य की दीवारों से, हमें सत्य के शिवालो को और ले चलो
सारे जहाँ के सब दुखो का "एक ही तो निदान हैं"
या तो वह अज्ञान- हैं ....या तो वह अभिमान हैं
नफरतों के ज़हर से,प्रेम के प्यालो की और ले चलो
अज्ञान- के ....
हमके मर्यादा न तोडे "अपनी सीमा में रहे"
ना करे अन्याय और ना अन्याय औरो का सहे
कायरो से दूर हो,वीर ह्रदयवालो की और ले चलो
अज्ञान- के अंधेरो से हमें ज्ञान के उजालो की और ले चलो
असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो
अज्ञान- के ...........

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