skip to main |
skip to sidebar
नौकरी पेशा परिवारों का सच

- प्रस्तुति- Pandit Kishore जी
आज बैंगलोर में हुई एक घटना ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया की भारतीय मध्य वर्गीय समाज पैसा कमाने के लिए किस हद्द तक जाने को तैयार बैठा हैं एक "परिवार" अपने सात महीने के बच्चे को घर पर "आया" के भरोसे छोड़कर पैसा कमाने के लिए नौकरी करने जाता हैं व उन्हें पता चलता हैं की वह तथाकथित "आया" इस दूधमुहे बच्चे को भिखारियो को दिनभर के लिए १०० रुपये प्रतिदिन के हिसाब से दे देती हैं तथा शाम को उनके आने से पहले उसे वापस घर ले आती हैं ऐसा पिछले तीन सप्ताह से चल रहा था यहाँ देखे तो इस सारे प्रकरण में दोष सिर्फ़ उस "आया" का नज़र नही आता बल्कि दोष ख़ुद उस परिवार का दिखता हैं जो इतने छोटे बच्चे को सिर्फ़ चंद पैसे के लिए किसी गैर के भरोसे छोड़ के नौकरी करने जाता हैं माना की पैसा बहुत ज़रूरी हैं परन्तु किस कीमत पर ? अगर बात पैसे की ही हैं तो फ़िर बच्चा पैदा करने की ज़रूरत क्या हैं, पहले कमाओ फ़िर परिवार बढाओ अगर आप किसी बच्चे की देखभाल भी नही कर सकते तो उसे जनम क्यों देते हैं एक साथ सभी सुख तो प्राप्त नही किए जा सकते शायद यह इस परिवार का अपराध बोध ही हैं की वह इस सारे घटनाक्रम की रिपोर्ट तक लिखवाना नही चाहता ऐसे में संयुक्त परिवारों की ज़रूरत महसूस की जाती हैं यदि इस परिवार के साथ भी कोई अपना होता तो शायद आज उन्हें ये दिन देखना नही पड़ता, इस घटना ने ऐसे कई सवालो को जन्म दे दिया हैं हम अपनी दुनियादारी में अपनों के लिए ही अपनों से ही कितने दूर हो गए हैं भूतकाल को छोड़कर भविष्य सँवारने की यह फितरत हमें कितनी बड़ी कीमत देकर चुकानी पड़ रही हैं इस घटना से यह देखा जा सकता हैं यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य हैं की भिखारी उस बच्चे को नशे का सेवन भीख मांगने के लिए करवाते थे जिससे वह हमेशा सोया रहे....... क्या इस बच्चे का इतना कसूर काफी नही था की उसके माँ बाप उसे इतनी छोटी उम्र में भी उसे घर पर किसी गैर के भरोसे छोड़कर स्वयं नौकरी करने जाते थे
बेहद कष्टदायक व रोंगटे खड़े करने वाली घटना ....
ReplyDelete