Friday, August 26, 2011

कुछ ऐसे चल रही है जिंदगी

कुछ ऐसे चल रही है जिंदगी
की दोस्तों के छाँव के सेहरे से
अपने फन को सजाता हूँ
और भींगते घने उस पेड़ के नीचे
खिल खिला कर बच्चो को हँसता हूँ
जो राही रुक चुके है उनको
बढ़ने  का नशा बताता हूँ
ग़म की कुछ तंग गलियों में
हँसी  के ठहाको को फसांता   हूँ
 ..............कुछ ऐसे चल रही है जिंदगी

कहीं कुछ कठिन चेहरों पर
फिसलाता हूँ हंसी  ऐसी
की जैसे सर-सर फिसलती हो
लता कुछ पेड़ से लिपटी
कहीं थोड़ी अनजान  गलियों में
पुराने धुन  सजाता हूँ
जहाँ सोयी थी ख़ामोशी
 जगा कर साज आता हूँ
 ..............कुछ ऐसे चल रही है जिंदगी

प्रस्तुत कविता हमें हमारे मित्र विश्वनाथ ने भेजी हैं | 

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