है कौन यहाँ जिसके दिल में दुःख की छाप नहीं
सच कहता हूँ दोस्त उसी ह्रदय में बस कविता की थाप नहीं !
मन जब दुःख की भट्टी में जल भुन कर स्वर्ण सा गहराता है
कवी नयन अश्रु पीकर, लब मुस्कान सजाये कविता कर जाता है !
दुःख ही वोह गाढ़ी स्याही है जिसमे कविता रंग पाता है
है कौन यहाँ जो सुख में कभी सस्वर कविता कर पाता है ?
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