Wednesday, February 23, 2011

कविता कर पाता

है कौन यहाँ जिसके दिल में दुःख की छाप   नहीं
सच कहता हूँ दोस्त उसी ह्रदय में बस कविता की थाप नहीं !

मन जब दुःख  की भट्टी  में  जल भुन कर स्वर्ण सा गहराता है
कवी  नयन अश्रु पीकर, लब  मुस्कान सजाये कविता कर जाता है !

दुःख ही वोह गाढ़ी स्याही है जिसमे कविता रंग पाता है
है कौन यहाँ जो सुख में कभी सस्वर कविता कर पाता है ?


--- विश्वानि, फ़रवरी २३, २०११

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