माँ से बोला था आज कविता में जब तक न दोगी आशीर्वाद
मौन रहेगा दिल मेरा, न बोलेगा सुप्रभात या धन्य वाद
भोली माँ ने करुणा कर झट सुन ली मूरख की फ़रियाद
हँसकर बोली
“मैं माँ हूँ ,तू बुद्धू बालक मेरा - कभी न माँ भूले बालक को - यह रखना याद “
छेड़ के मेरे मन के कठिन तार, माँ बोली - " लिख मैं देती तुझको वचन ये चार "
उड़े मन पतंग बन कर, सजे फूल, हर जगह बहार
लो आया मन में मौज लिए वसंत पंचमी का त्यौहार
हे माँ शारदे मूढ़ मलिन मैं बालक तेरा
न जानू तेरी पूजा, अर्चना, कथा या सार
अर्ध ज्ञान में हास्य, व्यंग और अलंकार सजाये
लो पहनो मेरी कविताओं का हार !
ज्ञान कला की देवी तू माँ
तुझ बिन मूरख , नीरस ये संसार
नतमस्तक रहे तेरे चरणों में सदा माँ
अनिल ,मनोज, विश्वानि और तुलसी अटवाल !
यह कविता हमें हमारे मित्र विश्वनाथ जी ने बसंत पंचमी के उपलक्ष्य में भेजी |
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