Wednesday, February 9, 2011

माँ का आशीर्वाद

माँ से बोला था आज कविता में  जब तक   दोगी  आशीर्वाद
मौन रहेगा दिल मेरा, बोलेगा सुप्रभात या धन्य वाद
भोली माँ  ने  करुणा कर  झट सुन ली मूरख की फ़रियाद
हँसकर बोली
मैं माँ हूँ ,तू बुद्धू बालक मेराकभी   माँ भूले  बालक को -  यह रखना याद
छेड़  के मेरे मन के कठिन तार, माँ बोली - " लिख मैं   देती तुझको वचन ये चार "  
उड़े मन पतंग बन करसजे फूल, हर जगह बहार
लो आया मन में मौज लिए वसंत पंचमी  का त्यौहार

हे माँ शारदे  मूढ़ मलिन मैं बालक तेरा 
जानू  तेरी पूजा, अर्चना, कथा या सार
अर्ध ज्ञान में हास्य, व्यंग और  अलंकार सजाये
लो पहनो मेरी कविताओं का हार  !

ज्ञान कला की देवी तू माँ
तुझ बिन  मूरख , नीरस ये संसार
नतमस्तक  रहे तेरे चरणों में सदा माँ
अनिल ,मनोज, विश्वानि और तुलसी अटवाल !

यह  कविता हमें हमारे मित्र विश्वनाथ जी ने बसंत पंचमी के  उपलक्ष्य में भेजी  |

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