आज अपनी लिखी एक कविता याद आ रही हैं जिसे मैं इस ब्लॉग के जरिये आप सब तक पहुचाना चाह रहा हूँ इसआशा के साथ की आप सब को यह पसंद आएगी यह कविता मैंने ५ साल पहले लिखी थी |
कविता का शीर्षक मैंने सोचा हैं "जब"
जब कुछ भी ठीक ना हो
रौशनी की किरण ना हो
छुपने की जगह ना हो
जीने की वजह भी ना हो
मुझे आवाज़ देना मैं आ जाऊंगा |
जब सब रास्ते बंद हो
ना जीने की उमंग हो
ज़िन्दगी बोझ लगने लगे
ख़ुद से ही डर लगने लगे
मुझे आवाज़ देना मैं आ जाऊंगा|
जब कोई साथ ना दे
पीछे से आवाज़ न दे
दिल खाली वीरान सा हो
अपनी कोई पहचान ना हो
मुझे आवाज़ देना मैं आ जाऊंगा |
जब ये मन उदास हो
कोई भी ना पास हो
किसी की तलाश हो
ना ख़ुद पे विश्वास हो
मुझे आवाज़ देना मैं आ जाऊंगा |
जब दुनिया डराने लगे
अपने बेगाने से लगे
तन्हाई सताने लगे
अँधेरा रिझाने लगे
मुझे आवाज़ देना मैं आ जाऊंगा|
जब तुम्हे किसी की जरुरत हो
हां प्यार करने की फुर्सत हो
ज़िन्दगी का मकसद पाना हो
किसी का दिल जो चुराना हो
मुझे आवाज़ देना मैं आ जाऊंगा|
सिर्फ़ तुम्हारा ............
Wednesday, September 9, 2009
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