-वो एक ख़त तुम्हारा जो मेरे नाम था
मुझे सारे जगत का मालिक बना गया
-कल जो मिला मुझे तुम्हारा लिखा कागज़
सारी उम्र का मेरा लेखन परिणाम बता गया
-शब्दों में तुम्हारे जो छुपा हुआ जाल था
सीधी सरल भाषा में मुझे आइना दिखा गया
-हो सके तो फ़िर मुझे एक दिन लिखना
देर ना करना और इस बार याद रखना
वो कभी ना लौटा जो एक बार गया ..............
Wednesday, September 9, 2009
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मन के भावों को आपने बहुत खूबसूरती से बयां किया है। बधाई।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }