यह दिल के दिलकश गलियाँ हैं , यहाँ रंग सवरते रहते है
यहाँ जीत मैं कुछ खामोशी है , हार कभी चुप्पी ताने है
दिल की धड़कन के नगाडे हैं , कोई रंक नहीं सब राजवाडे है
लुट कर ही यहाँ आबाद हुए , न जाने कितनी मजनू हैं
यह "दिल की कलम से "विश्वनाथजी द्वारा प्रेषित किया गया हैं
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