Tuesday, October 20, 2009

कम आसमां कम ज़मी

कल शाम मेट्रो रेल में यात्रा करते समय जब बाहर की तरफ़ नज़र गई तो अचानक दिमाग में कुछ शब्द उमड़ने लगे जिन्हें लिखने का यह छोटा सा प्रयास कर रहां हूँ आशाः करता हूँ की आप सभी को यह अवश्य पसंद आयेंगे |

कम "आसमां" कम "ज़मीं" है यारो
हम भी कितने"गरीब"है यारो

कल जो लुटा करते थे,घरो को
वो आज सबसे बड़े "शरीफ" है यारो

कोई"बंगले" में कोई"फुटपाथ"पर
अपना अपना "नसीब" है यारो

कल तक जो मेरे बेहद"अज़ीज़" थे
आज वो मेरे ही "रकीब" है यारो

पीना, पीलाना,पीकर धमकाना
ये कैसी,कौनसी"तमीज" है यारो

चंद "हसरते" व थोडी "ख्वाहिसे"
बस यही अपनी "खरीद" है यारो


आ ही गए हो तो"पीकर" चलो
"मैयखाना- ए- जिंद" करीब है यारो

1 comment:

  1. कल तक जो मेरे बेहद"अज़ीज़" थे
    आज वो मेरे ही "रकीब" है यारो

    -बहुत बेहतरीन..वाह!!

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